लोग आज "योग "और "आध्यात्म"को एक चीज मान रहे है ,योग में अत्यन्त कोशिकाओं को जगाने का नियम है,और यह पंच मुद्राओं पर आश्रित है, इसके लिए ब्रम्हचर्य की जरूरत पड़ती है, सगुण में बाहरी भक्ति है,33 करोंड़ देवताओं की भक्ति है , दूसरी निर्गुण भक्ति है-हम इसका भी खंडन नहीं कर रहे है ,यह सगुण से ऊँची है यह अंतर्गाम्य में ले जाती है,इसलिए निर्गुण उपासक पंच मुद्राओं पर एकाग्र होते है ,ये धारायें है ,भक्ति की हमारे हिन्दू धर्म से है , निर्गुण ओ करे जो ब्रम्हचारी हो जो सन्यासी है,निर्गुण ओ करे जो विषय-विकार न करे ,.. "जहां भोग वहां योग विनाशा " अतः जो भी बिषय करता है उसके लिए पंच मुद्राओं की भक्ति वर्जित है .........." सगुण भक्ति करे संसारा ,निर्गुण योगेश्वर अनुसारा इन दोनों के पार बताया ,मेरे चित एको नहीं आया " ...जय श्रीहरि:
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