कपिल मुनि ने राजा सगर के 60000,हजार पुत्रों को जो भस्म किया ,ओ क्या था यानि अन्दर के विकारो को नहीं जीत पाए थे,दुर्वासा जी ने 56 कोटि यादवों को जो श्रॉप दिया वो क्या था ,अगर इतनी तपस्या करके वो क्रोध को नहीं जीत पाये तो फिर तपस्या से आत्मज्ञान कैसे प्राप्त करोगे ?...ऋषि पराशर को ही ले लीजिए मछोदरी के साथ जो किया एक आत्म-ज्ञानी कर सकता है ,तपस्या कि तो क्या यही प्राप्त करके आये थे, मछोदरी (लड़की) तो बचना चाहती थी,उसने कहा कि सूर्य देव देख रहे है,ऋषि ने अपनी तपस्या के बल से सूर्य देव को बादलों से ढक दिया ,कन्या (मछोदरी)ने फिर कहा जल देवता देख रहे है,पराशर ने हाथ घुमाया जल में रेत ही रेत हो गई उसे भी गुम कर दिया ,लड़की फिर भी बचना चाह रही थी,लड़की ने कहा मै मछोदरी हूँ ,मेरे शरीर से मछली की बदबू आती है,ऋषि ने अपनी तपस्या से लड़की को महकदार बना दिया योजन दूरी तक उसकी महक जाने लगी ,तपस्या से यही सब प्राप्त कर पाए थे,पराशर ऋषि पर जो काम सवार हुआ था,उससे नहीं बच सके ,और अन्त में लड़की के साथ रति क्रिया की लड़की तो बचना चाह रही थी ,पर शक्तिशाली ऋषि से नहीं बच पाई ,क्या आत्म-ज्ञानी कहेंगे ऋषि को हम किसी की बुराई नहीं कर रहे है,हमारा कहने का मतलब है-कि काम ,क्रोध,से ऋषि मुनि भी नहीं बचे,दुर्वासा,कपिल,पराशर आदि,...योग के द्वारा मन-माया से बाहर नही निकल सकता, जय श्रीहरि:..शुप्रभात.......
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