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जय श्रीहरि:
वेदांत -सिद्धान्त : आत्यन्तिक दुःखनिवृति वेदान्त के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है,वेदांत के अनुसार जीवन की समस्याओं को केवल वस्तुनिष्ठ और दृश्य जगत की घटनाएं नहीं मानी जा सकती है,न ही उन्हें व्यक्तिनिष्ठ अथवा मानसिक कल्पना मात्र कहा जा सकता है,वे काल और परिस्थिति के परिवर्तन के कारण नहीं होती और न रहस्यमय भाग्य द्वारा हम पर थोपी जाती है,हम यह नहीं कह सकते,कि हमारी इच्छा स्वाधीन है,और साथ ही यह भी नहीं कह सकते की वह स्वाधीन नहीं है,यदि हम सब कुछ दैव-निर्दिष्ट होता तो जीवन का कोई अर्थ नहीं होता ! इसके विपरीत यदि हमारी इच्छा पुर्णतः स्वाधीन होती तो हम दुःख की शिकायत नहीं करते ,वेदांत का कहना है कि शुभ और अशुभ वस्तुएँ नहीं,बल्कि भावनाएँ है,सुख और दुःख एक ही मन की दो अवस्थाएं है,संसार न तो अच्छा है ,और न ही बुरा है, वह बिभिन्न व्यक्तियों के मनों द्वारा उनकी उपाधियों के फलस्वरूप मूल्याकन के कारण अच्छा या बुरा दीखता है,इससे यह निष्कर्ष निकलता है,कि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अनुभव किया गया शुभ-अशुभ का यह संसार बाहर नहीं बल्कि मन के अन्दर ही है,मन की उपाधियाँ और पुर्वनुग्रह ,पूर्वजन्म के संचित कर्मों के संस्कारों के कारण होते है और इनके फलस्वरूप एक विशेष मनोवृति बन जाती है,..स्वामी विवेकानंद के शब्दों में कहें तो "हमें वही मिलता है जिसके हम पात्र है" आओं हम अपना अभिमान छोड़ दें ,और यह समझ लें कि हम पर आई हुई कोई भी आपत्ति ऐसे नहीं है जिसके हम पात्र नहीं थे,फिजूल चोट कभी नहीं पड़ती ,ऐसी कोई बुराई नहीं है,जो मैंने स्वयं अपने हाथों न बुलाई हो,इसका हमें ज्ञान होना चाहिए,तुम आत्मनिरीक्षण कर देखो तो पाओगे कि ऐसे एकभी चोट तुम्हे नहीं लगी जो तुम्हारी स्वयं की गई न हो ,...जय श्रीहरि:....शुप्रभात
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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