" मै देखऊँ तुम नाही गीदहिं दृष्टि अपार , बूढ़ भयऊ न त करतेऊं कछुक सहाय तुम्हार ! तह अशोक उपवन जहँ रहई ,सीता बैठि सोच रत अहई !! इसी दोहे को लेकर लोगो के मन में श्री हनुमान जी के लिए यह भ्रम जरूर उत्पन्न होता है ,कि जब सम्पाती ने इतना स्पष्ट करके सीता जी का पता बता दिए थे ,तो फिर श्री पवन सुत ने लंका पहुँचकर बिभीषण से क्यों सीता जी का पता पूंछते है,(मंदिर मंदिर प्रति कर सोधा ,मंदिर में न देखि बैदेही ) इस प्रकार का अन्बेषण क्यों करने लगे ,यदि कहा जाय की कोई और अभिप्राय से ऐसा कर रहे थे तो यह कहना अनुचित होगा क्योंकि साधु पुरुष मिथ्या व्यवहार नही करते और उन्होंने स्पष्ट ही बिभीषण जी से कहा - " देखि चहऊँ जानकी माता"इतना ही नहीं जब बिभीषण जी ने श्री सीता जी का पता बताया ,तभी वे अशोक वाटिका में गए है,जैसे - "पुनि सब कथा बिभीषण कही ! जेहि बिधि जनकसुता तंह रही !! जुगुति बिभीषन सकल सुनाई ,चलेऊ पवन सुत बिदा कराई "जिस समय विवर के अन्दर तपःपुनज्जा नारी ने यह आदेश दिया कि 'मूंदहु नयन बीवर जाहूं , पैईहु सीतहि जानि पछिताहूँ " "मै अब जाव जहाँ रघुराई ' जिसके सुनते ही जब भगवान के कार्य को पूरा करके मै भी मंगलमय स्वरुप को नेत्र भर देखूंगा ,इन्ही विचारों में चित्त रमा हुआ था, मन तहँ जहँ रघुबर बैदेहिं "के अनुसार ध्यानस्थ अवस्था में ही थे ,यहाँ तक की सम्पाती के पूरे प्रसंग में और अंगद के प्राण त्याग की तैयारी में कुछ न बोल सके थे,जहाँ सम्पाती के समुद्र लंघन प्रसंग में ध्यान नही टूटा तब जाम्बवंत जी को श्री हनुमान जी से स्पष्ट कहना पड़ा कि " कहहूँ रीछपति सुनु हनुमाना !का चुप साध रहे बलवाना !! यह संकेत करते हुए स्मरण दिलाया तब तक सम्पाती बता चुके थे,कि सीता जी कहाँ है,यह प्रसंग श्रीहनुमान जी ध्यानस्थ होने के कारण नहीं सुन सके थे,तभी लंका जाकर बिभीषण से पूँछते है, तभी तो जाम्बवंत कहते है," राम काज लगि लगि तब अवतारा "अर्थात श्रीराम जी की सेवा के लिए ही आपने साक्षात् शिव होकर भी बानर का रूप धारण किया है, दोहा-जानि राम सेवा सरस समुझि करब अनुमान ! रूद्र देह तजि नेहवस बानर भे हनुमान !! इतना सुनते ही श्री हनुमान जी का ध्यान भंग हो गया और प्रभु सेवा का विचार आते ही ,"सुनतहिं भयऊ पर्बताकारा " इसी से हमारे सभी भ्रम,सभी संदेह मिट जाते है, साभार" रामचरित मानस "अतः SumitD News का सभी से अनुरोध है की Youtubeपर लाइक ब्युज पाने के लिए कुछ असामाजिक लोग बहुत ही घटिया तरीके से "रामचरित मानस '"को लेकर नयी पीढ़ी को भ्रमित कर रहे है जिनसे सावधान रहे और अपने धार्मिक पुस्तकों का अनादर न करे ,अपने आप में विचार करे त्रुटी अपने भीतर ही मिल जाएगी धन्यवाद जय श्रीहरि: शुप्रभात....
'
'
0 comments:
Post a Comment