जब यह बात प्रकृति सिद्ध है है कि गिद्ध मरे हुए जीवों को ही खाते है,जीवित प्रनियोके पास नहीं जाते ,तब काल भी परवाह न करने वाले जाम्बवंत ,हनुमान,अंगद आदि निर्भय और अध्यंत धीर-वीर सुभट पंखहीन जरठ गिद्ध के " मोहि अहार दीन्ह जगदीसा "इस बचन से क्यों डर गए ,यह तो सर्वथा असंभव लगता है ? ....फिर प्रसंग पर विचार करके देखने पर यहाँ बात ही कुछ और पाई जाती है,क्योकि ग्रन्थ की पंक्ति है, " डरपे गीध बचन सुनि काना ,अब भा मरन सत्य हम जाना " जब जामवंत ,हनुमान अंगद आदि सीता जी की खोज में जाते समय समुद्र के किनारे त्रिकुट पर्वत के पास पहुचते है,तो खिन्न भाव से समुद्र के किनारे बैठते है,सबके मन में केवल यही शुभ प्रतीक्षा थी,कि देखे भगवान की दया कहा कब कैसे होती है,इतने में ही अशुभ सूचक अमंगल रूप गिद्ध की बोली सुनाई पड़ती है,तब उन्होंने सोचा कि जान पड़ता है,हमारी होनहार ठीक नही है,अब लक्षण भ ऐसा ही दिखाई देता है,कि हमारा यंहा निश्चय ही मरण होगा- "अब भा मरन सत्य हम जाना "कह अंगद लोचन भर बारी,दुहूँ प्रकार भई मृत्यु हमारी ! इहाँ न सुधि सीता कै पाई,उहाँ गए मारिहि कापीराई !!जब सम्पाती ने गुफा में यह सुना कि उदास बैठे हुए बहुतेरे जीव मरने के लिए तैयार है,तभी उसने कहा - " मोहि अहार दीन्ह जगदीसा " अर्थात इनके मरने पर इनको खाकर तृप्त हो जाऊँगा ! बल्मिकीय रामायण में भी लिखा है कि - "भाक्षिश्ये वानराणाम् मृतं मृतम् " वे लोग जो भयभीत हो रहे थे, घबराहट के कारण नही ,बल्कि उनके ह्रदय में ऐसा विचार ही उत्पन्न हुआ था,तभी तो आगे की चौपाई कहती है - " कह अंगद बिचारि मन माही ,धन्य जटायु सम कोऊ नाही ! राम काज
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रामायण की एक बात जो आज भी सभी के मन में खटकती है ?जब हनुमान सहित अंगद आदि का भी जब धैर्य जबाब दे गया ?
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