मुहम्मद साहब" के समय में अरब निवासी कई-कई स्त्रियाँ रखते थे,मुहम्मद साहब ने इसका विरोध किया और कहा और व्यवस्था दी,कि एक व्यक्ति चार पत्नी रख सकता है,समान अधिकार वालों को यह व्यवस्था खटक सकती है,किन्तु अरब निवासियों को यह संख्या इतनी काम प्रतीत हुई कि उन्होंने मुहम्मद साहब के विरुद्ध तूफान खड़ा कर दिया ,वे लोग स्त्रियों का वैसा ही प्रयोग करते थे,जैसा पशुओं का करते थे,पिता के मरने पर पुत्र माँ को पत्नी स्वरुप रख लेता था,और उसके भी मरने पर नाती-पोते भी ऐसा कर लेते थे ,पुत्र-वधू का उपभोग पत्नी की तरह करते थे,मुहम्मद साहब ने व्यवस्था दी कि कम-से कम दूध बचाकर शादी विवाह करना चाहिए ,पशुवत समाजों में सर्वत्र ऐसा ही था,और आज भी समान अधिकार को लेकर जिन देशों का उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है,उन देशों में बलात्कार,तलाक,हत्या,आत्महत्या ,स्त्रियों के अपहरण जैसी घटनाएं भारत से हजारों गुना अधिक होती है,आज भी विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ सतीत्व का मूल्य है,और सतीत्व आज भी यहाँ सुरक्षित है,माताओं के प्रति पुरुषों में सम्मान और गौरव की धारणा है ! सच कहा जाय तो स्त्रियों को पुरुषों के सामान अधिकार देने का विचार भारतीय मनीषियों के मस्तिष्क की ही उपज है,,किन्तु इस अर्थ में नही,जैसा की आज प्रचलन में है,महर्षियों ने अभ्यास करते-करते जब उस परमतत्व परमात्मा का दिग्दर्शन पाया, उस पथ पर भली-भांति दृष्टिपात किया ,उस पर सभी को चलाकर देखा तो पाया कि स्त्री और पुरुष कहलाने वाली आत्माएं सामान है,भगवतपथ पर चलने की समान क्षमता रखती है,इसीलिए भक्ति-साधन के क्षेत्र में उन्होंने स्त्री को भी पुरुषों के समान अधिकार दिया ! सिर्फ समानता ही नहीं हमारे मनीषियों ने माता को पिता और स्वर्ग से भी ऊँचा स्थान प्रदान किया,प्राचीन भारत में पुत्र को माता के नाम से संबोधित करने की प्रथा थी,अन्धे धृतराष्ट्र को "अम्बिकानंदन "कहा जाता था ! चार पांच सौ वर्ष के वयोवृद्ध आदरणीय भीष्म पितामह "गांगेय"संबोधन में अपना गौरव मानते थे,"कुन्तीपुत्र "अर्जुन को "कौन्तेय "कहा जाता था,इस तरह माताओं का आदर सदैव रहा है और आज भी सौभाग्य से भारत में है !! जय श्रीहरि: !!
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