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जय श्रीहरि:

कारण कौन नाथ मोहि मारा ,मै बैरी सुग्रीव पियारा

किसी प्रियजन कि मृत्यु हो जाय ,धन नष्ट हो जाय तो मनुष्य को शोक होता है,ऐसे ही भबिष्य को विवेक को लेकर चिन्ता होती है,कि अगर स्त्री मर गई तो क्या होगा? पुत्र मर गया तो क्या होगा?आदि ये शोक चिन्ता अपने विवेक को महत्त्व न देने के कारण ही होते है,संसार में परिवर्तन होना,परिस्थिति बदलना आवश्यक है,अगर परिस्थिति नही बदलेगी तो संसार कैसे चलेगा ,मनुष्य बालक से जवान कैसे बनेगा?मुर्ख से विद्वान् कैसे बनेगा ,रोगी से निरोगी कैसे बनेगा ? वृक्ष का बीज़ कैसे बनेगा ,बीज का बृक्ष कैसे बनेगा परिवर्तन के बिना संसार स्थिर चित्र की तरह बन जायेगा,वास्तव  में मरने वाला (परिवर्तनशील)ही मरता है,रहने वाला कभी नहीं मरता ,यह सबका प्रत्यक्ष अनुभव है कि मृत्यु होने पर शरीर तो हमारे पास हमारे सामने ही पड़ा रहता है,पर शरीर का मालिक
(जीवात्मा)निकल जाता है ,अगर इस अनुभव को महत्व दे,तो फिर चिन्ता -शोक नहीं हो सकते ,"बालि" के मारे जाने पर भगवान "श्रीराम " इसी अनुभव की ओर "तारा"का लक्ष्य कराते है !  !" तारा बिकल देखि रघुराया ,दीन्ह ज्ञान हरि लीन्ही माया ! छिति जल पावक गगन समीरा ,पंच रचित अति अधम सरीरा !! प्रगट सो तनु आगे सोवा, जीव नित्य के हि लगि तुम्ह रोवा! उपजा ग्यान चरन तब लागी, लिन्हेसि परम भगति बर मांगी !! (रामचरित मानस ,किष्किन्धाकाण्ड ११-2-3) विचार करना चाहिए कि जब चौरासी लाख योनियों में कोई भी शरीर नही रहा तो फिर यह शरीर कैसे रहेगा ? जब चौरासी लाख शरीर मै मेरे नही रहे ,तो फिर यह शरीर मै -मेरा कैसे रहेगा ?यह विबेक मनुष्य -शरीर में हो सकता है,अन्य शरीर में नही !!
 भगवान् "श्रीराम" इसी अनुभव की ओर "तारा" का लक्ष्य कराते है
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Milan Tomic

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