जिस प्रकार सूर्य अनंत है,पृथ्वी अनंत है,उसी प्रकार समय भी अनन्त है,इस अनन्त समय को महीनो और वर्षों में गिनना उसी तरह हास्यपद है,जैसे समुद्र की जलराशि को मापने के लिए लीटर की इकाई निर्धारित करना,इसीलिए हमारे पूर्वजों ने लाखों वर्षों के कलियुग ,द्वापरयुग,त्रेतायुग,सतयुग सभी युगों की कल्पना की,जो ब्रम्हा का एक दिन भी नहीं है,उन्होंने सन,सम्वत् ,तारिख -जैसे छोटे पैमानों का उपयोग इतिहास लेखन में नहीं किया,मनीषियों की सारग्रहिणी दृष्टि में घटनाओं का महत्त्व होता था,तारीख का नहीं,किसी महापुरुष के जन्म -मृत्यु की तारिख क्या लिखी जाय ,जबकि आत्मा का न तो जन्म होता है,और न मृत्यु होती है ? यह तो विराट प्रभु तक की यात्रा के बिभिन्न पड़ाव है,यात्री की दृष्टि लक्ष्य पर ही रहती है,पड़ाव पर नहीं,आजकल के भौतिकवादी अपने नाम का प्रचार करने के लिए सड़क,पार्क,गार्डेन ,शहर के नाम अपने से जोड़ देते है,पर महाऋषियों ने अपना स्मारक सितारों पर बनवाया जो युगों तक मानवता को अनुप्राणित करते रहेंगे,विक्टोरिया पार्क से गांधी पार्क भले ही बन जाये ,किन्तु "ध्रुब तारा" सप्तऋषि "मंडल "अगस्त्य तारा
युगों तक उनकी उपलब्धियों का स्मरण करता रहेगा, तुच्छ स्मारकों अथवा पैमानों में पूर्वजों की कोई रूचि नहीं थी,जिन महापुरुषों के इतिहास से जीव का वास्तविक कल्याण सम्भव है,केवल उन्ही आख्यानों को मनीषियों ने संकलित किया है !साथ ही लोक-शिक्षण हेतु दुर्जनों का उदाहरण भी संग्रहित कर लिया,चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि इतिहास के अंतर्गत पुराण,इतिवृत्ति ,आख्यिका ,उदाहरण ,धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र सभी आते है,अर्थ-1/5 "पुराण का अर्थ ही पुरानी घटनाएं है,अतः भारतीय आर्षग्रंथों में निहित हमारा इतिहास सर्बथा प्रामाणिक है ! महाभारत की घटना आज से लगभग 5000 वर्ष पहले की है-ऐसा शिला लेखों तथा पंचांगों की परम्परा से प्रमाणित है,महाभारत में रामायण की घटना का संकेत है,रामायण पुराण ,शास्त्र ,उपनिषद,और वेदों का सारांश है,जिससे स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थ और भी प्राचीन है ! अतः यदि आज कोई विश्व की सभ्यता को चार-छः हजार वर्ष पहले तक ही सिमित कहे तो उसका केवल यही आशय है,कि वह अपने चार-छः हजार वर्ष पहले से सभ्य होने का दावा कर रहा है,रही प्रलय और महाप्रलय की बात ,तो पूज्य महाराज जी का कहना था कि सृष्टी अनादि हैऔर रहेगी ! प्रलय न हुआ है, न होगा , वस्तुतः "प्रलय" महाप्रलय " योग के शब्द है ! इनपर हम विशेष आर्टिकल लिखेंगे !! जय श्रीहरि: !!
युगों तक उनकी उपलब्धियों का स्मरण करता रहेगा, तुच्छ स्मारकों अथवा पैमानों में पूर्वजों की कोई रूचि नहीं थी,जिन महापुरुषों के इतिहास से जीव का वास्तविक कल्याण सम्भव है,केवल उन्ही आख्यानों को मनीषियों ने संकलित किया है !साथ ही लोक-शिक्षण हेतु दुर्जनों का उदाहरण भी संग्रहित कर लिया,चाणक्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि इतिहास के अंतर्गत पुराण,इतिवृत्ति ,आख्यिका ,उदाहरण ,धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र सभी आते है,अर्थ-1/5 "पुराण का अर्थ ही पुरानी घटनाएं है,अतः भारतीय आर्षग्रंथों में निहित हमारा इतिहास सर्बथा प्रामाणिक है ! महाभारत की घटना आज से लगभग 5000 वर्ष पहले की है-ऐसा शिला लेखों तथा पंचांगों की परम्परा से प्रमाणित है,महाभारत में रामायण की घटना का संकेत है,रामायण पुराण ,शास्त्र ,उपनिषद,और वेदों का सारांश है,जिससे स्पष्ट है कि उक्त ग्रन्थ और भी प्राचीन है ! अतः यदि आज कोई विश्व की सभ्यता को चार-छः हजार वर्ष पहले तक ही सिमित कहे तो उसका केवल यही आशय है,कि वह अपने चार-छः हजार वर्ष पहले से सभ्य होने का दावा कर रहा है,रही प्रलय और महाप्रलय की बात ,तो पूज्य महाराज जी का कहना था कि सृष्टी अनादि हैऔर रहेगी ! प्रलय न हुआ है, न होगा , वस्तुतः "प्रलय" महाप्रलय " योग के शब्द है ! इनपर हम विशेष आर्टिकल लिखेंगे !! जय श्रीहरि: !!
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