भारतीय दर्शन में मन को सूक्ष्म पदार्थ माना गया है,जो प्रथम पंचभूत आकाश से बना है,यह याद रखना चाहिए,कि पदार्थ की मानसिक धारणा एक चित्तवृति ही है,इसीलिए उस आकाश तत्व से निर्मित है,जिससे मन निर्मित है,उस पदार्थ का उच्चारित नाम अनादि शब्द की स्थाई अभिव्यक्ति है,यह अनादि शब्द आकाश की स्थायी अभिव्यक्ति है,इस प्रकार नाम के साथ उसके अर्थ का विचार सदा संयुक्त रहता है,नाम और विचार चेतना में सदा एक साथ उदित होते है,इसीलिए हिन्दू शास्त्रों में सृष्टि को केवल नाम रूप या नामरूपात्मक कहा है !!
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