इस जगत की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय जिससे होती है, अर्थात् जो जगत उत्पति स्थिति और प्रलय का निमित्त कारण है,वह ब्रम्ह है,जैसा की श्रुति कहती है- जिससे ये भूत उत्पन्न होते है,उत्पन्न होकर जीते है,और मरते हुए जिसमे लीं होते है,उसकी जिज्ञासा का वह सत्य ब्रम्ह है, ब्रम्ह शास्त्रप्रमाणक है ब्रम्ह इन्द्रियों की पहुँच से परे है,इसलिए वह प्रत्यक्ष का बिषय नहीं है,अनुमान भी उसकी झलक मात्र देता है,पर शास्त्र उसका दिव्य स्वरुप दर्शाता है,जिससे अनुमान इधर ही रह जाता है,अर्थात् कहा जाय कि जिस तेज से प्रदीप्त होकर सूर्य तपता है,उस महान प्रभु को वह नहीं जानता ,जो वेद को नहीं जानता है,वह ब्रम्ह का शास्त्र-प्रमाणक होना एक तात्यपर्य से है,सारे शास्त्र का एक तात्यपर्य ब्रम्ह के प्रतिपादन में है,अर्थात कहा जय कि -सारे वेद जिस पद का अभ्यास करते है,इसलिए श्रुति का तात्यपर्य एक ब्रम्ह के प्रतिपादन में है,अर्थात् कहा जाय कि कही शुद्ध रूप से कहीं शबल स्वरुप अथवा उपलक्षण से , वेदान्त दर्शन के आदि के चारों सूत्र बेदान्त की चतु: सूत्रीय कहलाते है,इनमे सामान्य रूप से बेदान्त का बिचार कर दिया है,विशेष रूप से आगे भी करना है,...जय श्रीहरि:
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