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जय श्रीहरि:
हम प्रतिक्षण एक मनोवैज्ञानिक भ्रम में जी रहे है,जिसके परिणाम स्वरुप ही मन में थकान निराशा और झुंझलाहट पैदा होती है,यह भ्रम द्रष्टा और दृश्य ,आत्मा और अनात्मा के अंतर को न समझ पाने के कारण होता है,अनात्मा सक्रीय है,सारे कार्य करता है,तथा दृश्य जगत में इधर-उधर जाता-आता है,सच्चा आत्मा साक्षी और प्रकाशक है,अपने स्वरूपभूत प्रकाश के द्वारा देह और मन को प्रकाशित करने के अतिरिक्त वह उनके कार्यों में कोई सक्रिय योगदान नहीं करता,जिस क्षण हम आत्मा और अनात्मा को एक दूसरे से अपनी बुद्धि में पृथक करने में समर्थ होते है,उसी क्षण दृष्टा आत्मा को मुक्ति,विश्राम और शान्ति का अनुभव होता है,इस आश्चर्यजनक सत्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए,क्या यह अचम्भे की बात नहीं कि यह जानते हुए भी कि देह और मन हमारे है,व्यवहार में हम सोचते है कि हम ही देह और मन है ? सीधा-सादा तर्क तो यह है: यदि हम यह कहें कि मेरे एक देह और एक मन हैतो मेरी आत्मा और देह -मन के बीच स्वामी और सम्पति अथवा अधिकारी और अधीनस्थ का सम्बन्ध होना चाहिए ,देह और मन अधिकारी के अधिकार में विद्यमान पदार्थ है और वास्तविक " अहं " या आत्मा अधिकारी है,तो फिर अधिकारी और अधिकृत के बीच यह व्यर्थ का भ्रम क्यों ?क्या हम अपने व्यवहारिक जीवन में अधिकृत को ही सदा अधिकारी नहीं समझते ?क्या हमारा सामान्य अहम् बोध देह और मन के साथ एकाकार नहीं हो गया है ?इनका स्वामी ,अधिकारी कहाँ चला गया है ? वस्तुतः वास्तविक "अहम् " पहचानने में ही नहीं आता ,ज्योही हम वास्तविक "अहं "को पहचानकर उसके शाश्वत महिमामंडित सिंघासन पर उसे प्रतिष्ठित करते है त्योंही ,देह -यंत्र की अवस्था चाहे कैसी भी क्यों न हो,हमे विश्राम ,तनाव शुन्यता और मन की पूर्ण निर्मुक्त्ता का अद्भुत अनुभव होता है,उसे उच्चतर " अहं"के पृथक अस्तित्व का अनुभव करते ही अत्यन्त क्रियाशीलता के बीच भी हमें अत्यन्त गहनतम विश्राम का सुख प्राप्त होता है ....जय श्रीहरि:...शुभ रात्रि
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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